मणिपुर हिंसा...90 दिन, 160 से ज्यादा मौत...फिर आगजनी
इंफाल । भारत के पूर्वोत्तर में स्थित मणिपुर देश के खूबसूरत राज्यों में से एक है। यह राज्य उत्तर में नागालैंड और दक्षिण में मिजोरम, पश्चिम में असम, और पूर्व में म्यांमार के साथ अपना बॉर्डर शेयर करता है। नेचुरल ब्यूटी से भरा ये राज्य पिछले तीन महीने से हिंसा की आग में चल रहा है। राज्य में पहली बार 3 मई को हिंसा हुई थी। उसके बाद से हिंसा रूक ही नहीं और गुरूवार को ठीक 3 महीने बाद भी प्रदेश में शांति बहाल नहीं हो पाई है। मणिपुर से रुक-रुककर हिंसा की खबरें सामने आ रही हैं। ताजा हिंसा बिष्णुपुर जिले में हुई है। गुरुवार को कांगवई और फौगाकचाओ इलाके में हिंसा भडक़ी है। बताया जा रहा है कि कुछ प्रदर्शनकारी और सुरक्षाबलों के बीच झड़प हो गई। अधिकारियों ने बताया कि हालात पर काबू करने के लिए सेना और आरएएफ के जवानों ने आंसू गैस के गोले दागे। इस दौरान 20 प्रदर्शनकारी घायल हो गए।
उधर, जिला प्रशासन ने इंफाल पूर्व और इंफाल पश्चिम से कफ्र्यू में ढील को वापस ले लिया है। एहतियात के तौर पर पूरे इंफाल घाटी में रात के कफ्र्यू के अलावा दिन के दौरान भी प्रतिबंध लगा दिया है। उधर, मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर विपक्षी दलों का संसद में हंगामा जारी है। गुरुवार को भी विपक्षी दलों ने संसद में जमकर हंगामा और नारेबाजी की। हंगामे के चलते संसद की कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा।
उधर, गुरुवार तडक़े मणिपुर हाईकोर्ट ने अहम आदेश दिया। हाईकोर्ट ने प्रस्तावित भूमि के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। इस भूमि पर हिंसा में मारे गए कुकी समुदाय के सदस्यों के शवों को सामूहिक रूप से दफनाया जाना था। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा करने से पहले से ही अस्थिर कानून और व्यवस्था की स्थिति फिर बिगड़ सकती है।
मणिपुर में हिंसा की असल वजह जॉब और एजुकेशन में मिलने वाला रिजर्वेशन है। कुकी समुदाय को राज्य में स्पेशल स्टेटस मिला हुआ है। कोई भी व्यक्ति कुकी जनजाति की जमीन को खरीद नहीं सकता है। वहीं, कुकी मैदान में आकर जमीन खरीद सकते हैं बस सकते हैं। लेकिन मैतेई पहाड़ी एरिया में नहीं जा सकते। कुकी समुदाय को प्रीवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज एक्ट के तहत मजबूत कानूनी कवच भी प्राप्त है। कुकी जनजातियों को होने वाली कमाई इनकम टैक्स फ्री होती है। मणिपुर का 90 फीसदी भू-भाग पहाड़ी है जहां कुकी बसते हैं। बाकी 10 फीसदी भूभाग पर मैतेई और दूसरी जाति बसी है। मैतेई को शेड्यूल ट्राइब का दर्जा नहीं मिले, इसे लेकर विवाद बना हुआ है।
मणिपुर के मैतई समाज के लोग कुकी समुदाय के तर्ज पर खुद के लिए अनुसूचित जनजाति की मांग कर रहे हैं। वहीं, नागा और कुकी का साफ मानना है कि सारी विकास की मलाई मूल निवासी मैतेई ले लेते हैं इसलिए उन्हें स्ञ्ज स्टेटस नहीं मिलना चाहिए। बता दें कि कुकी ज्यादातर म्यांमार से आए हैं। करीब 200 सालों से कुकी को स्टेट का संरक्षण मिला। कई इतिहासकारों का मानना है कि अंग्रेज नागाओं के खिलाफ कुकी को लाए थे। नागा अंग्रेजों पर हमले करते तो उसका बचाव यही कुकी करते थे। बाद में अधिकतर ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया जिसका फायदा मिला और एसटी स्टेटस भी मिला। वहीं, राज्य के मुख्यमंत्री ने मौजूदा हालात के लिए म्यांमार से घुसपैठ और अवैध हथियारों को ही जिम्मेदार ठहराया है।