धौलपुर । राजस्थान के धौलपुर और एमपी के मुरैना जिले की सीमा में बहने वाली चंबल नदी में घड़ियालों के देवरी घड़ियाल पालन केंद्र में 200 अंडों मे से 181 नन्हें बच्चे निकले हैं। बाकी 19 अंडों से भी बच्चों के निकलने का इंतजार है। इन बच्चों को अभी पालन केंद्र में ही रखा जाएगा। जब इनकी लंबाई 1.2 मीटर हो जाएगी तब इन्हें चंबल नदी में छोड़ दिया जाएगा। 
पालन केंद्र में गणना के दौरान चंबल नदी में 2 हजार 4 सौ 56 घड़ियाल पाए गए हैं। साल 1975 से 1977 तक दुनियाभर की नदियों का सर्वे किया गया था। इस दौरान पूरी दुनिया में महज 200 घड़ियाल ही पाए गये थे जिनमें 46 घडियाल चंबल नदी में मिले थे। देश में सबसे अधिक घड़ियाल चंबल नदी में ही पाए जाते हैं। इसके बाद बिहार की गंडक नदी और यूपी की गिरवा नदी, उत्तराखंड में राम गंगा नदी और नेपाल में नारायणी और राप्ती नदी में घड़ियाल हैं। 
घड़ियाल तेजी से दुनियाभर में विलुप्त हो रहे थे। ऐसे में भारत सरकार ने वर्ष 1978 में चंबल नदी के 960 किलोमीटर एरिया को राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य घोषित करने के साथ ही देवरी घड़ियाल पालन केंद्र की स्थापना की थी। यहां हर साल अंडों को रखकर एक निश्चित तापमान 30-35 डिग्री में रखा जाता है। इनसे बच्चे होने के बाद इन्हें पालकर 1.2 मीटर लंबा होने तक इंतजार किया जाता है। फिर इन्हें चंबल नदी में छोड़ दिया जाता है। जब ये देखा गया कि इनकी संख्या काफी कम है। इसके साथ ही मादा घड़ियाल के अंडों को शिकारी पक्षी, पशु और जीवों से बचा पाना भी मुश्किल था। इनके नन्हे बच्चे चंबल नदी की तेज धारा में भी जान गवां बैठते। इनका भी शिकार तेजी से होता है। ऐसे में घड़ियाल पालन केंद्र में हर साल 200 अंडों को रखकर इनसे बच्चों का जन्म कराया जाने लगा। देखा गया कि नेचुरल बर्थ के बाद नेचर में इनके अंडों का सर्वावाइल महज 20 फीसदी ही है। यानी 100 अंडों से केवल 20 बच्चे ही बचकर बड़े घड़ियाल बन पा रहे थे। वहीं रिसर्च सेंटर में इनका सर्वाइवल 90 फीसदी तक हो गया है। चूंकि ये विलुत्पप्राय जीवों की कटेगरी में आते हैं इसलिए इनका संरक्षण करना बेहद जरूरी हो गया था।