कश्मीर विलय दिवस पर मैराथन सहित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित
जम्मू । जम्मू कश्मीर में विलय दिवस के अवसर पर गुरुवार सुबह मैराथन सहित विभिन्न कार्यक्रमों आयोजित किये जा रहे हैं। हाथों में तिरंगा थाम भारत माता की जय, वंदे मातरम के जयघोष करते युवाओ ने मैराथन में भाग लिया । विलय दौड़ मैराथन नामक यह आयोजन भारतीय जनता युवा मोर्चा की ओर से किया गया।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तानी कबायलियों ने जब 22 अक्टूबर 1947 को हमला किया तो वहां के महाराजा हरी सिंह ने अपनी रियासत को बचाने के लिए भारत सरकार से मदद मांगी। जून 1947 के उस दौर में अंग्रेजी शासन समाप्त होने के साथ ही भारत में भी नई व्यवस्था तैयार हो रही थी। महाराजा हरि सिंह जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान की अपेक्षा भारत से जुड़ना चाहते थे। दूसरी तरफ नेहरू महाराजा के फैसले लेने के अख्तियार पर ही सवाल उठा रहे थे। उनकी नजर में शेख अब्दुल्लाह ही जम्मू-कश्मीर के भविष्य का फैसला कर सकते थे, जिन्हें महाराजा हरि सिंह ने क्विट कश्मीर आंदोलन के आरोप में वर्ष 1946 में जेल में बंद रखा था। शेख अब्दुल्ला कश्मीर के लोकप्रिय नेता थे और पंडित नेहरू से भी उनके रिश्ते थे। लेकिन जवाहरलाल नेहरू की दोस्ती का बदला मिजाज शेख अब्दुल्ला की राजनीति को रास नहीं आ रहा था। कश्मीर के मामले में जवाहरलाल नेहरू की कुछ गलतियों की वजह से कश्मीर में शेख अब्दुल्ला का कद लगातार बढ़ता रहा। शेख अब्दुल्ला वर्ष 1948 में जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री बन गए। शुरुआती दौर में नेहरू ने शेख अब्दुल्लाह का समर्थन किया। वर्ष 1953 में कई आरोपों के बाद शेख अब्दुल्ला को उनके पद से हटा दिया गया और गिरफ्तार कर लिया गया।
कश्मीर के महाराजा ने स्वतंत्रता की महत्वाकांक्षाओं को बरकरार रखते हुए 26 अक्टूबर 1947, अमर पैलेस, जम्मू में एक अनुबंध पत्र में लिखा- मैं महाराजा हरि सिंह जम्मू और कश्मीर को हिंदुस्तान में शामिल होने का ऐलान करता हूं। जिसे भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल ने बिना शर्त स्वीकार कर लिया था। माउंटबेटन के 27 अक्टूबर 1947 को महाराजा को लिखे पत्र में राज्य के विलय की स्वीकृति की सूचना दी गई थी। ऐसा करते हुए, माउंटबेटन ने कहा कि भारत सामान्य परिस्थितियों की वापसी पर राज्य के लोगों की इच्छाओं का पता लगाएगा। 27 अक्टूबर 1947 को नेहरू ने कुछ दिनों पहले जम्मू और कश्मीर के नए प्रधान मंत्री के रूप में श्रीनगर पहुंचे मेहर चंद महाजन और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता शेख अब्दुल्ला को संयुक्त राष्ट्र को निगरानी में शामिल करने के अपने फैसले के बारे में बताया था। 3 नवंबर को, उन्होंने पाकिस्तान के प्रधान मंत्री लियाकत अली खान को पत्र लिखते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र जैसी निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय एजेंसी किसी भी जनमत संग्रह की निगरानी करने के लिए कहने का निर्णय लिया गया था। चूंकि पाकिस्तान ने उस समय कश्मीर में अपनी संलिप्तता से इनकार किया था और कहा था कि हमलावर कबायली आक्रमणकारी थे, यह भारत के लिए कश्मीर में पाकिस्तान की भूमिका को समाप्त करने का एक अवसर था।