एक साल से गोपनीय प्रतिवेदन की स्वीकृति की राह ताक रहे नायब तहसीलदार

भोपाल । प्रदेश में प्रमोशन पर प्रतिबंध के कारण पदोन्नतियों के लिए प्रदेश भर के अधिकारी-कर्मचारी सरकार पर दबाव बना रहे हैं। ऐसे में सरकार ने वरिष्ठता के आधार पर उच्च पदनाम का रास्ता निकाला गया है। कई विभागों में इसका पालन किया जा रहा है। लेकिन विडंबना यह है कि प्रदेश में करीब 200 से अधिक नायब तहसीलदार ऐसे हैं जो सीआर यानि गोपनीय प्रतिवेदन को स्वीकृति नहीं मिलने के कारण तहसीलदार नहीं बन पा रहे हैं। जानकारी के अनुसार प्रदेश में 244 नायब तहसीलदार हैं। जिन्हें उच्च पदनाम पाकर तहसीलदार का प्रभार प्राप्त करना है। इनका कहना है कि वर्ष 2022-23 के गोपनीय वार्षिक प्रतिवेदन को स्वीकृति नहीं मिल पाई है, जबकि 31 दिसंबर 2023 सीआर लिखने की अंतिम तिथि थी। सभी दस्तावेजों का परीक्षण करने के उपरांत समय-सीमा में यह प्रक्रिया कंपलीट होना थी। दरअसल, एक साल से इनकी सीआर यानि गोपनीय प्रतिवेदन को स्वीकृति नहीं मिल पाई है। जबकि इनके द्वारा अनेकों बार विभाग को अवगत कराया गया है। पिछले वर्ष इन्होंने इसके लिए निर्धारित प्रपत्र में जानकारी भरी गई थी।


एक साल से कर रहे प्रयास
गौरतलब है कि प्रदेश में वर्ष 2016 से प्रमोशन पर प्रतिबंध लगा हुआ है। पदोन्नतियों के लिए प्रदेश भर के अधिकारी-कर्मचारी सरकार पर दबाव बना रहे थे। तब वरिष्ठता के आधार पर उच्च पदनाम का रास्ता निकाला गया है। विभागों में यह प्रक्रिया अंतिम चरणों में है। सरकार के भी आदेश हैं कि उच्च पदनाम की प्रक्रिया में तेजी लाई जाए। ताकि रिटायर्डमेंट के करीब लोकसेवकों को भी यह लाभ मिल सके। यही चिंता नायब तहसीलदारों को है कि समय से उन्हें यह लाभ मिलना चाहिए। पिछले वर्ष दिसंबर से ही नायब तहसीलदार गोपनीय प्रतिवेदन लिखवाने के लिए प्रयास करते रहे हैं। मौजूदा वर्ष की शुरूआत हुई। तब भी नायब तहसीलदार अपने स्तर से विभाग से संपर्क करते रहे। इसके बाद लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगी तो प्रक्रिया में विलंब ही होता गया। अब इनका कहना है कि धीरे-धीरे पूरा एक साल निकल गया है।


केवल मिल रहा है आश्वासन
नायब तहसीलदार आये दिन मंत्रालय में संपर्क कर रहे हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ आश्वासन मिल रहे हैं। मप्र राजस्व अधिकारी संघ के अध्यक्ष डॉ. धमेन्द्र सिंह चौहान का कहना है कि पिछले एक साल से प्रयास कर रहे हैं, लेकिन गोपनीय प्रतिवेदन स्वीकृत नहीं हो पाया है। इस कार्य में देरी से परेशानी बढ़ी है। हाल ही में मंत्री को भी पूरी समस्या से अवगत कराया गया है।  प्रदेश में पद संरचना के अनुसार 606 पद तहसीलदारों के स्वीकृत हैं। इनमें 238 पद खाली पड़े हुए हैं। कारण है कि अधिकांश तहसीलदारों को उच्च पदनाम देकर डिप्टी कलेक्टर बना दिया गया है। करीब 35 तहसीलदार ही हैं, जो अभी तक डिप्टी कलेक्टर नहीं बन पाये हैं। अब स्थिति यह है कि जो मौजूदा तहसीलदार हैं। कलेक्टरों ने काम को गति देने के लिए इन पर अतिरिक्त काम का बोझ डाल दिया है। प्रदेश में एक-एक तहसीलदार को तीन से लेकर चार-चार तहसीलों की जवाबदारी सौंपी है। अधिकांश तहसीलों में नायब तहसीलदार प्रदेश में तहसीलदार का काम तो कर रहे हैं, लेकिन उनके पास इस पद का अधिकृत प्रभार नहीं है। अब नायब तहसीलदारों का कहना है कि उनकी संख्या 244 है, जो उच्च पद की पात्रता रखते हैं। अगर विभाग गोपनीय प्रतिवेदन लिखे दे तो 238 पद आसानी से भर सकते हैं।