भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है।इसके साथ ही आश्विन मास की अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष चलेंगे। इस दौरान पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। माना जाता है कि पितर इन 16 दिनों में धरती में ही वास करते हैं और अपने परिवार के लोगों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

इन जगहों पर श्राद्ध करना अशुभ

दूसरों की भूमि पर : शास्त्रों के अनुसार, ऐसी भूमि पर श्राद्ध नहीं करनी चाहिए, जो दूसरे के नाम पर हो। अगर आप ऐसी जगह पर श्राद्ध कर रहे हैं, तो इसका किराया या दक्षिणा जमीन के मालिक को जरूर दें।

अपवित्र भूमि : शास्त्रों के अनुसार, बिल्कुल भी ऐसी जगह पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए, जो अपवित्र है।

शमशान : शास्त्रों के अनुसार, जिस जगह पर श्मशान हो या फिर पहले रहा हो, तो उस जगह पर भी श्राद्ध करना शुभ नहीं माना जाता है।

देव स्थान पर : किसी भी मंदिर के अंदर या देवस्थान वाली जगह पर श्राद्ध कर्म न करें। अगर आप करना चाह रहे हैं, तो पहले पंडित से जरूर सलाह लें।

इन जगहों पर श्राद्ध करना शुभ

घर पर : शास्त्रों के अनुसार, घर पर साफ-सुथरी जगह पर आसानी से श्राद्ध कर सकते हैं। बस इस बात का ध्यान रखें कि श्राद्ध करते समय व्यक्ति का मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।

नदी के तट  : किसी भी नदी, संगम आदि के तट पर आसानी से श्राद्ध कर्म किए जा सकते हैं। इन जगहों पर विधिवत श्राद्ध कर्म कराने के लिए पंडा भी मिल जाएंगे।

बरगद के पेड़ के नीचे : शास्त्रों में सबसे शुद्ध पेड़ बरगद को माना जाता है। इस जगह भी श्राद्ध कर्म करने से शुभ फलों की प्राप्ति होगी।

तीर्थ स्थल :  गया सहित अन्य तीर्थ स्थल जो श्राद्ध कर्म के लिए उच्च माने जाते हैं। वहीं जाकर श्राद्ध करना शुभ होगा।

गौशाला : जिस गौशाला में बैल न हो, वहां पर भी श्राद्ध कर्म किए जा सकते हैं। श्राद्ध कर्म करने वाली जगह को गोबर से लीप लें। इसके बाद ही श्राद्ध करें।