उदयपुर  | गधों के बिना जीवन अधूरा है, चौंकिए मत, यह बात शत प्रतिशत सत्य है |  हम भले ही डिजिटल इंडिया  की बात कर रहे हैं |  सारी सुविधाएं हमारे उंगलियों के इशारे पर घर तक पहुंच रही हैं |  लेकिन अभी कुछ जगह ऐसी हैंं जहां गधे न हों तो लोग प्यासे रह जाएंगे, उन्हें पानी नहीं मिलेगा |  अगर कहीं बीमार पड़ गए तो अस्पताल जाने के लिए भी गधा ही सहारा है |  हालांकि 21वीं सदी के आधुनिक भारत, जिसकी चर्चा अक्सर सत्ताधारी नेता करते रहते हैं, उस देश में यह स्थिति चौंकाने वाली ही है |  सीधी बात करें तो विकास और आधुनिकता की ये बातें खोखली हैं क्योंकि राजस्थान के उदयपुर  के पास आज भी ऐसे इलाके हैं, जहां सरकार नहीं गधे सहारा बना हुए हैं |

राजस्थान के उदयपुर से लगभग 125 किलोमीटर दूर कोटड़ा इलाके में अब भी ऐसे कई गांव हैं, जिनका आधुनिक दुनिया से कोई वास्ता नहीं है |  यहां न तो सड़क है, न पीने के पानी की व्यवस्था |  स्कूल-अस्पतालों का तो नाम मत लीजिए |  यहां पीने के पानी के लिए भी लोग पहाड़ों से निकलने वाले झरनों और तालाबों पर निर्भर हैं |  यहां हैंडपंप तक नहीं लग सका है |  गांव वालों कहते हैं कि यहां बिजली भी नहीं है लेकिन सांसद जी मानने को तैयार नहीं |

कोटड़ा क्षेत्र में करीब 200 परिवार ऐसे हैं, जिनकी जिंदगी गधों पर निर्भर है |  क्योंकि इन गांवों में हर सुविधा गधे के जरिए ही पहुंचती है |  यहां पानी ले जाना हो, घरेलू सामान ढोना हो या फिर बीमार को अस्पताल के लिए सड़क तक पहुंचाना हो |  सभी काम के लिए गधा ही उनका सहारा है |  कई गांवों में आज तक हैंडपंप भी नहीं खुदा है |  पहाड़ियों के नीचे झरने के पानी को रोकने के लिए आदिवासियों ने गड्ढे बना रखे हैं, ताकि पानी इसमें ठहर सके |  वह बर्तनों में पानी भरकर गधों से अपने घरों को ले जाते हैं |  गांव में मवेशियों की प्यास भी इसी गड्ढे से बुझती है |