गायों को आवारा कहना हमारी सांस्कृतिक मूल्यों के विपरीत-मंत्री
जयपुर। पशुपालन एवं गोपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि राज्य सरकार गौवंश के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए प्रतिबद्धता से काम कर रही है। गाय हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। गाय के गोबर से बहुत सारे उत्पाद बनने लगे हैं और आज इसकी व्यावसायिक उपयोगिता हो गई है। इसी तरह गौमूत्र कई तरह की बीमारियों में काम आती है।कुमावत ने कहा कि पिछले कुछ सालों से समाज में गाय की उपेक्षा हो रही है। मशीनी युग आने से बैलों की उपयोगिता भी कम हो गई है।
आवारा शब्द का उपयोग सर्वथा अनुचित और अपमानजनक
वर्तमान समय में कुछ गौवंश विभिन्न कारणों से असहाय स्थिति में सड़कों या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर विचरते हैं। इन गौवंश के लिए आवारा शब्द का उपयोग सर्वथा अनुचित और अपमानजनक लगता है। यह हमारे सांस्कृतिक मूल्यों के भी विपरीत है। एक ओर हम गाय को माता कहकर बुलाते हैं वहीं दूसरी ओर इस तरह के शब्द का प्रयोग करते हैं। अत: स्वतंत्र रूप से विचरण करने वाले गौवंश को आवारा न कहकर निराश्रित/ बेसहारा गौवंश कहने से न केवल गौवंश के प्रति सम्मान, संवेदनशीलता और करूणा प्रदर्शित होती है बल्कि समाज में इनके प्रति उचित दृष्टिकोण भी निर्मित होता है। कुमावत ने कहा कि गौवंश के लिए आवारा शब्द को बदलने के विषय पर विधान सभा में भी चर्चा हुई थी और यह घोषणा की गई थी कि जल्द ही इस शब्द को बदल दिया जाएगा। विभागीय स्तर पर कार्यवाही करते हुए इस आशय के आदेश निकाल दिए गए हैं कि किसी भी सरकारी कार्यालय में गौवंश के लिए आवारा शब्द नहीं लिखें।