केजरीवाल भले जय श्रीराम बोलें, लेकिन कांग्रेस का साथ उनकी मजबूरी
नई दिल्ली । अरविंद केजरीवाल भले ही जय श्रीराम के नारे लगाएं लेकिन कांग्रेस का साथ उनकी मजबूरी है। जानकार बता रहे हैं कि आम आदमी पार्टी की राजनीति कांग्रेस के वोटों में हिस्सेदारी से ही चलती है। इंडिया ब्लॉक के सीट बंटवारे में भी यही देखने को मिल रहा है। देश के जिन पांच राज्यों में कांग्रेस और आप गठबंधन की ओर बढ़ रहे हैं, वहां बीजेपी से मुकाबले से पहले दोनों अब तक आपस में ही लड़ते रहे हैं। अरविंद केजरीवाल ने 2013 में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ शानदार चुनावी जीत के साथ अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को चुनावों में तो हराया ही, उसी की मदद से दिल्ली में पहली सरकार भी बनाई, तभी तो आज भी दिल्ली कांग्रेस के नेता अरविंद केजरीवाल के साथ चुनावी गठबंधन के लिए खुले दिल से तैयार नहीं हो पाते। 2019 के आम चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन की खूब कोशिशें की, लेकिन तब फैसले का अधिकार फिर से शीला दीक्षित के हाथों में ही आ गया था।
लेकिन शीला दीक्षित अपने रुख पर कायम रहीं, और आम आदमी पार्टी के साथ चुनावी समझौता नहीं ही किया। नतीजे आये तो शीला दीक्षित का फैसला भी सही साबित हुआ। कांग्रेस ने दिल्ली की सभी सात सीटों पर आप को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। दिल्ली की ही तरह पंजाब में भी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को ही बेदखल कर सत्ता हासिल की है, फिर भी दिल्ली और पंजाब की परिस्थितियां अलग देखने को मिली थीं। देखा जाये तो दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस से सत्ता छीन ली थी, लेकिन 2022 के चुनाव में पंजाब में तो ऐसा लगा जैसे कांग्रेस ने पूरी पूरी मदद कर दी हो।