जो भी हो जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा...

आज के परिवेश में बहुत से लोग ऐसे हैं, जो यह विश्वास रखते हैं कि किसी भी अच्छी डिग्री के बिना आप सफल होने की बात सोच भी नहीं सकते। लेकिन यह बात पूर्णत: सच नहीं है। कुछ करने के लिए डिग्री नहीं अपितु मेहनत और खुली आँखों से सपने देखने की हिम्मत होनी चाहिए। सफलता के लिए, केवल अक्षरज्ञान होना ही काफी नहीं है। सफलता के लिए, इंसान के अंदर जुनून और आगे बढऩे की भूख होनी चाहिए। मेरा मानना है, जिन्दगी में सफल होने की सीख केवल स्कूलों और कॉलेजों में पढाई जाने वाली किताबों में ही नहीं मिलती। आपको आपका शौक, आपकी लगन और आपका अपने शौक के लिए किया गया समर्पण आपको स्वशिक्षित कलाकार ही नहीं अपितु सर्वकालिक भी बना सकता है।
सरल शब्दों में, एक कलाकार के सन्दर्भ में सर्वकालिक होना अपने समय और अपनी रचना के प्रति ईमानदार होना कहलाता है। यहाँ ईमानदार होना बिना किसी डर और लोभ के अपने कार्य की निरंतरता बनाये रखने से है। एक स्वशिक्षित कलाकार जो कि अपने चिंतन और मनन से प्रेरित होकर किसी भी कला को स्वयं में जीवंत करता है उसे पेशेवर नहीं माना जाता है? इन दोंनों के बीच आखिर अन्तर क्या है? क्या यह उस कला की शिक्षा है? क्या यह उसकी कला का मौद्रिक मूल्य है? क्या यह कला जगत में उसकी क्या प्रतिष्ठा है? क्या यह उनका अपना अपना कौशल स्तर है? शायद यह सभी का मिश्रण है या शायद नहीं भी क्योंकि सच्चाई तो यह है कि, क्या आप अपने आप को एक स्वशिक्षित कलाकार मानते हैं या नहीं? क्योंकि जब कला आपके जीवन का उपभोग नहीं करती है, तब क्या वह महत्वपूर्ण और चर्चा का विषय है ं? जी हाँ, कुछ के लिए यह है, विशेष रूप से उनके लिए जिनमे पेशेवर बनने की इच्छा है। कई लोगों का ऐसा मानना है कि पेशेवर कलाकार अपनी कला से दूर रहते हैं बस उनका ध्यान अपनी कला को बेचने पर रहता है। लेकिन यह भी सरासर गलत है क्योंकि एक पेशेवर होने के लिए एक कुशल विक्रेता होने की जरूरत नहीं है, हालांकि कुशल विक्रेता बनने के साथ पेशेवर बनना थोड़ा आसान बन जाता है।
कला का समय प्रबंधन
कुछ बातें हैं, जो आपको स्वशिक्षित कलाकार से पेशेवर कलाकार बनने की और अग्रसित कर सकती है, यदि आप अपने को कला के साथ एक और पायदान पर ले जाना चाहते हैं, तो आपको गंभीरता से अपने कला को दिये जाने वाले समय की गणना करनी चाहिए। यदि आप वास्तव में अपनी वर्तमान स्थिति में रहकर भविष्य में स्वयं को स्थापित करना चाहते हैं तो आपको अपनी कलात्मक गतिविधियों पर बिताने के समय का मूल्यांकन भी करना ही होगा क्योंकि समय प्रबंधन अपने रचनात्मक प्रयासों के लिए समय देने की सोच के साथ ही शुरू हो जाता है।
महत्वपूर्ण है आत्मसम्मान और आत्मावलोकन
एक और खास बात, यहां आत्मसम्मान और आत्मावलोकन का घटक हमेशा आपकी क्रियाशीलता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहता है, जैसे हम अक्सर किसी और से सुनते रहते हैं कि, मैं शुरुआत में कलाकार बनने के लिए स्वयं से लड़ा। मैंने जाना कि मैं एक कलाकार बनने के लिए उचित पात्र नहीं था। मैं सही था या मैं बहुत अच्छा नहीं था लेकिन मैंने फैसला किया कि मैं कही जा रही बातों के अनुसार नहीं हूं इसलिए एक दिन मैंने अपने दिल की सुनी और फैसला किया कि मैं वो सबकुछ कर सकता हूं, जो मेरी जि़ंदगी में सबकुछ बदल दे और मैं ऐसा करने में सफल हुआ। मेरी हर रचना, पिछली से बेहतर नहीं थी, आपका यह निर्णय हमेशा आपके आत्मसम्मान एवं आत्मावलोकन के द्वन्द पर आधारित होगा। यह तथ्य आपके साथ या आपके विरुद्ध भी काम कर सकता है चाहे जब आप यह सोच रहे हों कि आप ये नहीं कर सकते हैं, फिर भी आप सही हैं।
यहाँ पर यह कहना भी उचित ही होगा कि, अविश्वास का घटक हमेशा दूसरों के सानिध्य से आता है और अंतत: आप को ही संक्रमित करके चला जाता है। अन्य लोगों का हमारे बारे में अक्सर क्या 'माननाÓ है? क्या हम कला में पुरानी घसीट को ही घसीट रहे हैं? जहाँ पर भी देखो चाहे वह राजनीतिक, आध्यात्मिक, नैतिक या लोकप्रिय राय ही क्यों ना हो, क्या हम अपनी कला से अन्य लोगों के 'माननाÓ को प्रभावित करते हैं? किन्तु यदि हम, क्या के रूप में सच्चे अनुभव को समझते हैं तो फिर किसी भी 'माननाÓ की बीमारी से बच सकते हैं और आप स्वशिक्षित से एक पेशेवर कलाकार भी बन सकते हैं क्योंकि यहाँ यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कोई भी विश्वास आपके पास यदि आपके खुद के शक के बिना है तो आप जरूर बन सकते हैं लेकिन फिर भी हम अक्सर दूसरों को हमारे लिए फैसला लेने के लिए कहते रहते हैं और 'माननाÓ नामक बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं।
लोकप्रियता और कलात्मकता
वर्तमान कला जगत में कौन सी स्वशिक्षित अथवा पेशेवर कला समझ आ रही है या नहीं, इसका निर्णय करने का आधार क्या होता है, इसका जवाब देना आसान है भी और शायद नहीं भी क्योंकि कला जगत में लोकप्रियता और कलात्मकता के बीच कोई सीधा संबंध अब नहीं रहा है किन्तु कलाकार की स्थिति, उसकी कला का बाज़ार मूल्य, उसकी खरीदी हुई लोकप्रियता, कला के ऐतिहासिक परिवेश में उसकी कला का समसामयिक महत्व इत्यादि घटक इसके आधार हो सकते हैं।
किसी स्वशिक्षित कालकार की कलाकृति के बारे में यह कहना कि यह सुंदर नहीं है या कलाकृति की परिधि में ये नहीं आ रही है अत: उसके मूल्य निर्धारण का ग़लत प्रतिमान होगा क्योंकि सुंदरता एक बहुत ही सापेक्षिक मूल्य है। यह मूलत: एक तरफ़ा विचार भी है, ऐसे में सवाल उठता है कि अच्छी कला क्या है इसका निर्धारण कौन करता है? बहुत सारी कलाकृतियां विलास की वस्तु हो चुकी हैं। कई सारे कला संग्रहकर्ताओं के लिए महँगी कार खऱीदने या कोई महँगी कलाकृति खऱीदने में कोई अंतर नहीं है, इसलिए इसे भी कला के मूल्य निर्धारण का आधार नहीं माना जा सकता है। फिर यहाँ मेरा मानना है कि किसी कलाकृति की गुणवत्ता के निर्धारण का कोई अनुभवसिद्ध तरीक़ा अगर है तो वो बाज़ार की चाल ही तो है, ये जो दिख रहा है या जो बिक रहा है वो ही बाज़ार है जहाँ कभी हम बेच रहे होते है और कभी स्वयं बिक भी रहे होते हैं। सटीक अर्थों में हम कला या वस्तु और कलाकार या खरीददार दोनों ही हैं, इसलिए हमें बाज़ार के मुख्य सिद्धांतों को भूलकर सैद्धांतिक रूप से कला बाज़ार की किसी भी गति पर शिकायत नहीं करनी चाहिए।
सफलता के तत्व
यहाँ पर यह कहना जरुरी है कि पेशेवर कलाकारों के सामने केवल वे ही स्वशिक्षित कलाकार अपना स्थान बना सके हैं जिन्होंने सफलता के कुछ खास तत्वों जैसे, आप क्या करना चाहते हैं ईमानदारी से तय किया है, अपनी खुद की विशिष्ट शैली निर्धारित की है, अपनी बड़ी सोच के जुनून को जि़ंदा बनाये रखा है, अपने उद्देश्य को अपने विचारों से निरंतर प्रकाशित करके रखा है, कभी वापस मत देखो और कभी हार मत मानो के एहसास के साथ हमेशा यह सोचा है की आप जो भी कुछ कर रहे हैं वो कला की दुनिया में एक महत्वपूर्ण योगदान है, का पालन किया है वही स्वशिक्षित कलाकार मिरांडा जूली, जीन-मिचेल बस्क्विट, फ्र्रीडा केलौ और योको ऊनो बन पाये हैं।
-शैलेन्द्र भट्ट